Yesterday while traveling from Ranchi to Delhi I remembered one small incident from my childhood. This sparked me about the depth ness of God fearing nature that gets imbibed in our heart from childhood.
It was Sunday’s evening and in old Doordarshan age it used to mean Movie time :-) I was watching a movie of Ashok kumar and in which he delivers a dialog
"Main kissi Bhagwan ko nahi manta "
I was around 8 years old that time and after listening to that dialog for around one day I kept thinking how he(Ashok Kumar) would have delivered that. Uttering a word against God was liking committing big sin for me. Upon much deliberation my tender mind come to following conclusion :-
He must have delivered that sentence into two pieces "Main Kissi Bhagwan ko" and "Nahi manta" then those pieces must have been joined together somehow.
Tuesday, December 30, 2008
God fearing saga
Sunday, December 14, 2008
चाहत जागी हैं
अब न रोक मुझे जीने कि
चाहत जागी हैं
हर सपनो मैं मेहनत के रंग कि
चाहत जागी हैं
गिर भी गया तो किया उठने कि
चाहत जागी हैं
चाहत जागी हैं
हर सपनो मैं मेहनत के रंग कि
चाहत जागी हैं
गिर भी गया तो किया उठने कि
चाहत जागी हैं
Saturday, November 22, 2008
हलकी सी बारिस
हलकी सी बारिस भींगी सी शाम
ऐसे ही मौसम मैं आई उसकी याद !
हर बूंदे मिटी मैं घुल
भीनी खुशबू संग ले आई उसकी याद !
ऐसे ही मौसम मैं आई उसकी याद !
हर बूंदे मिटी मैं घुल
भीनी खुशबू संग ले आई उसकी याद !
Wednesday, October 29, 2008
एक पल
एक पल गुजार लो संग मेरे कि
जीने के हजारों बहाने ढूँढ लूँगा
पास न भी हो तो किया
तेरे संग होने का ऐहसास बना लूँगा
जीने के हजारों बहाने ढूँढ लूँगा
पास न भी हो तो किया
तेरे संग होने का ऐहसास बना लूँगा
Saturday, October 18, 2008
हे प्रियतम !
हे प्रियतम ! बार बार समुद्र लेहरों कि तरह पास आ दूर क्यों चले जाते हो !
हर बार नई आशाओं का दीप जला के , फिर क्यों उन्हें बुझा जाते हो !
Saturday, July 19, 2008
पिघलते जिस्म के रंग
पिघलते जिस्म के रंग
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पिघलते जिस्म के रंग को देख
डर गया हु मैं !
हर एक के चेहरे अनेक देख
डर गया हु मैं !
किस्से उम्मीद करूँ मैं ,
भरोसे के कतल को देख
डर गया हु मैं !
किसका साथ मंगू मैं ,
एहशानफरामोशी के हद को देख
डर गया हु मैं !
इस शहर कि आवो हवा मैं
अपनी साँसों का मतलब
भूल गया हु मैं !
पिघलते जिस्म के रंग को देख
डर गया हु मैं !
---- कुमार अमरदीप
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पिघलते जिस्म के रंग को देख
डर गया हु मैं !
हर एक के चेहरे अनेक देख
डर गया हु मैं !
किस्से उम्मीद करूँ मैं ,
भरोसे के कतल को देख
डर गया हु मैं !
किसका साथ मंगू मैं ,
एहशानफरामोशी के हद को देख
डर गया हु मैं !
इस शहर कि आवो हवा मैं
अपनी साँसों का मतलब
भूल गया हु मैं !
पिघलते जिस्म के रंग को देख
डर गया हु मैं !
---- कुमार अमरदीप
Saturday, June 14, 2008
Rain Rain
Its raining outside & that too on Sunday morning -- proving paradise for late sleepers Mausam has suddenly become so beautiful......forced me to pen down few lines....
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Mausam kitna hasin hain
Jaise khilta hua gulab hain
dekho bundo ke sang
hilti hui patiya
kitni lajawaab hain !
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Mausam kitna hasin hain
Jaise khilta hua gulab hain
dekho bundo ke sang
hilti hui patiya
kitni lajawaab hain !
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Friday, June 13, 2008
Early Morning
- Its 4:30 early morning. Suffering from कोल्ड for last few days which has n't missed any chance to deprived me of sleep...so today went outside for pre-early walk :-)
It is so cool & calm , a scene ,I am sure most of urbanities would n't be aware of or has simply slipped off from their memory.
I have always been a morning lover. Even in my college days I used to get up early(not so early though) a habbit bit pradox to college's rule book. I am not sure of all benefits early rising habbit gives u but one thing which I got during my college days was extra window(infact only one) for study !!
Really morning always have its own charms. Mild breeze , evocative fragnance , calmness at its best... oh morning don't go away.......
Tuesday, June 10, 2008
Meri Ek Kavita
हे राम ! मैं अधर्मी पापी
देता हू तुम्हे ललकार
आ सको तो आओ इस धरा पे
फिर एक बार
सत्य कि माला लिए
विजय कि आशा लिए
करने धर्मं का कल्याण
आ सको तो आओ इस धरा पे
फिर एक बार
हे राम !
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