Friday, December 21, 2012

कुछ बदलने को जी चाहा हैं


न बंदूक न बाजुओं में ताकत
पर लड़ने को जी  चाहा हैं
कुछ बदलने को जी  चाहा हैं ।

मालूम नहीं बचे होंगे उन आँखों में आंसू  अब
दिल रोता हैं लेकिन मेरा
हजारों रूहों कि चीख सुन सुन के ।

ख़ूनी नाख़ून से खरोचे हु वे जिस्म
जिंदा हो के भी मरते जाते हैं -
सिहर उठ रहे  हर सोच मेरी ।

बुझने न देंगे  मसाल अब
लड़ने को जी  चाहा हैं
कुछ बदलने को जी  चाहा हैं ।
               
                          -अमर 
 
 




Friday, December 14, 2012

मंजिल करीब हैं

मोड़ पे  ऐसे , हजारों राहें निकलती हैं जहाँ
छोड़ वे बोले     -   "मंजिल करीब हैं" ।

Saturday, December 8, 2012

मुलायम यादे


ख्वाबों में मैं सांसे लेता हु
ख्वाबों ने,  मुझको जिंदा रखा हैं।
मासूम सी तेरी -
मुलायम यादों ने , मुझको जिंदा रखा हैं।

हजारों शहरों में  लुटता  आया हु
तुम्हे ढूँढते  बदनाम होता आया हु
तेरे प्यार ने, मुझको  जिंदा रखा हैं।
मासूम सी तेरी -
मुलायम यादों ने , मुझको जिंदा रखा हैं।

मालूम नहीं  निभाई थी  वफाई
या कि थी तुमने मुहसे बेवफाई
सवालों और उमीदों ने , मुझको जिंदा रखा हैं।
मासूम सी तेरी -
मुलायम यादों ने , मुझको जिंदा रखा हैं।

                                - अमर 

Saturday, December 1, 2012


लौटा दो कुछ पुराने लम्हों को ,
गलती नहीं होगी अबकी
जोश नहीं  तजुर्बा  जो साथ हैं ।