Saturday, June 22, 2013

बिन मौसम कि बरसात



बिन मौसम कि बरसात
आ थामा तुमने हाथ ।
आँखों में था गुस्सा
बन बैठा हैं प्यार ।

ओ रबा ! बेसबर क्यों किया हैं इतना ।

बरसो  खेले हम आँख मिचोली -
आँखों से जितने दूर जाते थे तुम
दिल के उतने करीब आते थे तुम ।
ये गुस्सा , ये नखरा था इंतज़ार जताना ।

ओ रबा ! बेसबर क्यों किया हैं इतना ।


बिन मौसम कि बरसात
आ थामा तुमने हाथ ।
आँखों में था गुस्सा
बन बैठा हैं प्यार ।

ओ रबा ! बेसबर क्यों किया हैं इतना ।

आँखों का था आँखों से   मिलना बस  
बह जाउंगी अब -
संग तेरे जाने कितनी दूर ।
ज़माने का डर
संग तेरे जाउंगी अब भूल ।

ओ रबा ! बेसबर क्यों किया हैं इतना ।

बिन मौसम कि बरसात
आ थामा तुमने हाथ ।
आँखों में था गुस्सा
बन बैठा हैं प्यार ।

ओ रबा ! बेसबर क्यों किया हैं इतना ।

1 comment:

Steve Finnell said...

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