रफ़्तार ऐ ज़िन्दगी
जमीं तू आसमां से मिलने की कोशिश न कर
मुश्किल से संभले हैं कदम , तू उड़ने की कोशिश न कर ।
ऐ ख़्वाब तुझे पँख लगाना कितना आसान हैं
ऐ हकीकत तेरे संग चलना कितना मुश्किल हैं ।
जी में आता हें कह दू हवा से रख ले पेहचान मेरी
बहके जब संग तेरे उड़ने को मन मेरा, कह देना मुझसे -
मैं तो पल भर की मर्ज़ी , संग तेरे अपनी पूरी ज़िंदगी
मैं ठहरना न जानू और तू वक़्त संग ठहराव ढूंढ़ने लग जायेगा ।
दौड़ इतनी तेज कि अपने साँसों की हांमी हो
अंधी दौड़ अक्सर अकेला और अज़नबी बना छोड़ जाती हैं ।
- अमर
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