इक मैं हु, इक तेरा यकीन हैं
इंसान एक, दोनो कितने अलग हैं ।
ढलते सूरज को देख , अँधेरे कि सोचता मैं
और तुम करती हो मेरी सुबह का इंतज़ार ।
राहें हजार , देख मेरे कदम डगमगा जाते हैं
और तुम हर राहों पे ढूंढ लेती हो मेरे निशान ।
हर हालात में , थामे रखा हैं तुमने मेरा हाथ
जाने क्यों करती हो तुम मुझसे इतना प्यार ।
इंसान एक, दोनो कितने अलग हैं ।
ढलते सूरज को देख , अँधेरे कि सोचता मैं
और तुम करती हो मेरी सुबह का इंतज़ार ।
राहें हजार , देख मेरे कदम डगमगा जाते हैं
और तुम हर राहों पे ढूंढ लेती हो मेरे निशान ।
हर हालात में , थामे रखा हैं तुमने मेरा हाथ
जाने क्यों करती हो तुम मुझसे इतना प्यार ।
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