Saturday, April 25, 2015

हज़ारों के   जनाजे में रोना  भी  नहीं   आता   हैं
ख़ुदा से ख़ुदा की शिकायत कर सुकून ढूंढ लेते हैं ।


हर   के   हाथों     में         खंज़र
दिल   में   दुश्मनों  की  कतार हैं । 
मौकापरस्ती का अब ये आलम हैं 
बेगुनाही की एक शाख के ताक में   
हर कोई कत्ले आम को बेताब  हैं । 


Sunday, April 5, 2015

तेरा यकीन

इक   मैं   हु,  इक  तेरा  यकीन   हैं
इंसान एक, दोनो कितने अलग हैं ।

ढलते सूरज को देख , अँधेरे कि सोचता मैं
और तुम करती हो मेरी सुबह का इंतज़ार ।

राहें हजार , देख मेरे कदम डगमगा जाते हैं
और तुम हर राहों पे ढूंढ लेती हो मेरे निशान ।

हर हालात में , थामे रखा हैं तुमने मेरा हाथ
जाने  क्यों करती  हो तुम मुझसे इतना प्यार ।