Saturday, January 19, 2013

वजूद


तेरे ख्वाबों में कई सुराख हो गए थे -
झाँक के देखा तो एक जिंदगी नज़र आई
जलती रही थी जो रिश्ते के अलाव पे बरसो से  ।

मेरे वजूद का बस्ता कमरे के एक कोने में पड़े थे
मैं जाने कब की खो गयी,
बस तुम ही तुम रह गए थे ।

तेरे सपनो के बादल ने दी थी
मुझको तिरागी कि पोशाक
पहन उसे समझोतों संग हो चली थी ।

बरसो बाद आज तेरी सपने टूटने लगे
मंजिल का भी ठिकाना न रहा
देख मेरी ओर लगायी तुमने उम्मीद कि आस ।

थमा हैं तेरा हाथ या दी अपनी  सांसो को नयी हवा
सवाल दिल पूछता रहेगा
पर जाने क्यों  बाहर कि धूप अच्छी लगी  ।
  - अमर 

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