Milta Rahunga Khawabo Main
Sunday, March 1, 2015
मिलता नहीं कोई यहाँ अपनी मज़हब का
दे दे ख़ुदा थोड़ी सी जमी घर बसाने को ।
हज़ारों निगाहों का शिकार हु मैं
मेरी लहू में अपनी किस्मत देख बैठे हैं वे ।
जाने कितने रंगो मैं रंग रखा हैं मुझको
मालूम नहीं मगर उनको मैं तो बस बेरंग हु ।
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