Saturday, October 13, 2012

इस शहर में

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        खुल खुल के बरसती थी मेरी अवारगी यहाँ
        अब खुद को छुपाये चलता हु मैं ।

        इस शहर में  आते ही
        बहकते दिल को संभाले चलता हु मैं ।

        मिल न जाये कही नज़र तुमसे
        निगाहों  को झुकाए चलता हु मैं ।

       खुद न पहचान ले पुराने खुद को
       आँखों के आईने को जगाये  चलता हु मैं।

       पिघल न जाये मेरी एहसान फरामोशी
       पुराने एहसान की हवा से बचता  चलता हु मैं ।

       खुल खुल के बरसती थी मेरी अवारगी यहा
       अब खुद को छुपाये चलता हु मैं ।
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अमरदीप

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