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खुल खुल के बरसती थी मेरी अवारगी यहाँ
अब खुद को छुपाये चलता हु मैं ।
इस शहर में आते ही
बहकते दिल को संभाले चलता हु मैं ।
मिल न जाये कही नज़र तुमसे
निगाहों को झुकाए चलता हु मैं ।
खुद न पहचान ले पुराने खुद को
आँखों के आईने को जगाये चलता हु मैं।
पिघल न जाये मेरी एहसान फरामोशी
पुराने एहसान की हवा से बचता चलता हु मैं ।
खुल खुल के बरसती थी मेरी अवारगी यहा
अब खुद को छुपाये चलता हु मैं ।
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अमरदीप
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