Saturday, February 7, 2009

हे नवयुग

हे नवयुग ! हर पल -

तुम मुझे मौत का खौफ दिखा रहे हो

और मैं जीने की साजिश रच रहा हू

गिरती नेय्तिक्ताओं से ,

टूटते रिश्तों से ,

मजहब की लडाईओं से ,

रौन्ध्ती बसों से ,

धुओं के छलों से ,

उन्मुक्त मदक्ताओं से ,

हर पल

तुम मुझे मौत का खौफ दिखा रहे हो
और मैं जीने की साजिश रच रहा हू
हे नवयुग

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