हे नवयुग ! हर पल -
तुम मुझे मौत का खौफ दिखा रहे हो
और मैं जीने की साजिश रच रहा हू
गिरती नेय्तिक्ताओं से ,
टूटते रिश्तों से ,
मजहब की लडाईओं से ,
रौन्ध्ती बसों से ,
धुओं के छलों से ,
उन्मुक्त मदक्ताओं से ,
हर पल
तुम मुझे मौत का खौफ दिखा रहे होऔर मैं जीने की साजिश रच रहा हूहे नवयुग