बरसों की ख़ामोशी का अंत भी खूब रहा
खयालों के अनगिनत परत खुलती चली गयी ।
*
तलब हैं ऐ ज़िंदगी तुमसे बात करने की
खुद के हालात बयां कर दिल को सकूँ आये ।
*
किया खूब बयां किया तुमने अपने एहसासों को
कुछ शब्द चुरा मेरी नज़म भी जवा हो उठी ।
- अमर
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तलब हैं ऐ ज़िंदगी तुमसे बात करने की
खुद के हालात बयां कर दिल को सकूँ आये ।
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किया खूब बयां किया तुमने अपने एहसासों को
कुछ शब्द चुरा मेरी नज़म भी जवा हो उठी ।
- अमर