एक सवाल ने संभाला हैं मुझे
कितना सच्चा, कितना गहरा
दिल से था पूछा तुमने -
छोटी छोटी बातों में रह जाओगे
सपनों कि मंजिल कब पाओगे ?
गिले शिकवों से था जो दिल भारी भारी
तोड़ चला हु उनको अब मैं बारी बारी ।
दर्द भी दिए थे जिसने
गले मिल उनसे भी
बस चलता रहता हु अब
बस मंजिल ही हैं सब ।
अमर
कितना सच्चा, कितना गहरा
दिल से था पूछा तुमने -
छोटी छोटी बातों में रह जाओगे
सपनों कि मंजिल कब पाओगे ?
गिले शिकवों से था जो दिल भारी भारी
तोड़ चला हु उनको अब मैं बारी बारी ।
दर्द भी दिए थे जिसने
गले मिल उनसे भी
बस चलता रहता हु अब
बस मंजिल ही हैं सब ।
अमर