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उन्मादक तूफ़ान  को देख रहा
बढ़ते अपनी ओर !
उम्मीद एक -
बक्श दे शायद मुझको
ले बस चपेट मैं अपने
खड़े जो संग मेरे !
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भीड़ मैं खोया हू
पर अपनी शख्शियत को भुला न पाया हू |
खो चूका हू खुद को
पर एतबार नहीं  कर पाया हू |
लगता हैं मुझको
मैं अलग हू |
'मैं अलग '  का अहम्
देते मुझको -
तूफ़ान से बचने को भरम |
       |||
एक दिन भरम टूटेगा ,
तूफ़ान कि आगोस मैं खुद को घिरा पाउँगा !
एक आखरी सवाल जेहन में आएगा
ऐ खुदा , मुझे  क्यों नहीं बक्शा -
देख लेते मेरे अच्छे कर्मो को सिला ?
हल्की हंसी संग  बोलेगा खुदा -
इस तूफ़ान मैं मेरा हाथ न था
ये तो तेरे अच्छे कर्मो को ही सिला था |
