Sunday, April 5, 2015

तेरा यकीन

इक   मैं   हु,  इक  तेरा  यकीन   हैं
इंसान एक, दोनो कितने अलग हैं ।

ढलते सूरज को देख , अँधेरे कि सोचता मैं
और तुम करती हो मेरी सुबह का इंतज़ार ।

राहें हजार , देख मेरे कदम डगमगा जाते हैं
और तुम हर राहों पे ढूंढ लेती हो मेरे निशान ।

हर हालात में , थामे रखा हैं तुमने मेरा हाथ
जाने  क्यों करती  हो तुम मुझसे इतना प्यार ।

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